Thursday, October 28, 2010

रामलीला के रंग हजार

उत्तर भारत में इन दिनों रामलीला की धूम है। न केवल जगह-जगह रामलीला का मंचन हो रहा है, बल्कि कुछ रामलीला समितियां तो अब इंटरनेट द्वारा इसका दुनिया भर में सीधा प्रसारण भी कर रही हैं। इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि राष्ट्रमंडल खेलों का आनंद लेने भारत आए कई विदेशी खेलप्रेमी न केवल राजधानी दिल्ली में, बल्कि कुमायूँ और रामनगर-वाराणसी तक पहुँच कर भगवान राम के जीवनचरित्र का मंचन देख रहे हैं।
रामनगर से शुरुआत
क्या तुम जानते हो कि मंच पर रामलीला की शुरुआत कब हुई थी? कहा जाता है कि इसकी शुरुआत वर्ष 1621 में रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की प्रेरणा से हुई और आयोजक थे तत्कालीन काशी नरेश। इसी साल काशी के अस्सीघाट पर गोस्वामी तुलसीदास ने एक नाटक के रूप में रामलीला का विमोचन किया था। इसके बाद काशी नरेश ने हर साल रामलीला करवाने का संकल्प लिया और इसके लिये रामनगर में रामलीला की भव्य प्रस्तुति करवाई। रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला 22 दिनों में पूरी होती है।
शरदपूर्णिमा पर समापन
कल दशहरा है और अधिकतर लोग यही मानते हैं कि इस दिन भगवान राम द्वारा रावण के वध और इसके पुतले में आग लगाए जाने के साथ रामलीला समाप्त हो जाती है। ऐसा नहीं है भोलूराम, दरअसल रामलीला विजयदशमी के पाँच दिन बाद अर्थात शरदपूर्णिमा तक चलती रहती है। हाँ, यह बात और है कि तब इसका मंचन विशाल स्टेज पर न होकर किसी मंदिर अथवा धर्मशाला के भीतर भक्तों के बीच हो रहा होता है। इसका समापन शरदपूर्णिमा की चाँदनी रात में (जिसे हिंदुओं में बहुत पवित्र माना जाता है) रामलीला के पात्रों को खीर खिलाकर होता है। इस दिन रोज की चटख पोशाकों की जगह सभी पात्र दूधिया सफेद कपड़ों में होते हैं और यह दृश्य देखते ही बनता है।
अलग-अलग हैं रंग
'कोस-कोस पर बानी बदले, सात कोस पर पानी' की तर्ज पर भारत के अलग-अलग इलाकों में रामलीला के अलग-अलग रंग है। तुम अयोध्या की रामलीला की तुलना कुमायूँ की रामलीला से नहीं कर सकते और दिल्ली में ही लालकिला की रामलीला और श्रीराम भारतीय कला केंद्र की रामलीला के मंचन में बहुत अंतर है। यह तो बात हुई भारत की, विदेशों में होने वाली रामलीलाओं के रंग तो और भी निराले हैं।
भारत के बाहर रामलीला
दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहास में कुछ ऐसे प्रमाण मिलते है, जिनसे ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही रामलीला का प्रचलन था। इस क्षेत्र के विभिन्न देशों में रामलीला के अनेक नाम और रूप हैं। इन्हें मुख्य रूप से दो वगरें 'मुखौटा रामलीला' और 'छाया रामलीला' में विभाजित किया जा सकता है। इंडोनेशिया और मलेशिया में खेली जाने वाली लाखोन, कंपूचिया की ल्खोनखोल तथा म्यांमार में मंचित होने वाली यामप्वे मुखौटा रामलीलाओं के उदाहरण हैं। मुखौटों के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला को थाईलैंड में खौन कहा जाता है। पुतलियों की छाया के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला मुखौटा रामलीला से भी निराली है। इसमें जावा तथा मलेशिया की वेयाग और थाईलैंड की नंग काफी मशहूर हैं!