किसी दुर्घटना के बाद कैसे दोबारा शुरू की जा सकती है जीवनरेखा, यही हुनर आम आदमियों को सिखा रहा है कानपुर के चिकित्सकों का एक दल
दुर्घटना अथवा अनहोनी पर किसी का बस नहीं चलता है, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि किसी हादसे में घायल व्यक्ति को अगर समय रहते सही प्राथमिक उपचार मिल जाए तो उसे दूसरी जिंदगी मिल सकती है। प्राथमिक उपचार की यह सीमारेखा दुर्घटना से मात्र पांच मिनट की होती है और यह छोटा सा समय अंतराल ही तय कर देता है कि व्यक्ति की मृत्यु होगी अथवा उसको मौत के मुंह से खींच कर इसी जिंदगी में दिया जा सकेगा पुनर्जन्म!
मार्ग दुर्घटना, हृदयाघात, जहरीली गैस रिसाव, विद्युत करंट, पानी में डूबना, लकवा मार जाना आदि मामलों में व्यक्ति की मृत्यु चोटों से कम, बल्कि दम घुटने से ज्यादा होती है। ऐसी दुर्घटनाएं किसी परिवार का सहारा न छीन सकें; किसी घर का चिराग न बुझा दें, इस अच्छी भावना से कानपुर में काम कर रही एक गैरसरकारी संस्था प्राणोदय आम लोगों को बिना किसी शुल्क के और उन्हीं की चुनी हुई जगह पर सीपीआर-बीएलएस तथा बेसिक ट्रामा मैनेजमेंट सिखाती है। दुर्घटना के बाद रुके हुए दिल को पुन: धड़काने का यह कौशल तथा संबंधित व्यक्ति को पर्याप्त चिकित्सा सहायता मिलने तक जीवित बनाए रखने का यह विज्ञान कई जानों को बचाने में कामयाब रहा है।
यह कानपुर के लिए गर्व की बात है कि पूरे देश में यही इकलौता शहर है, जहां कुछ समाजसेवी भावना वाले व्यक्तियों और चिकित्सकों ने जीवनदीप जलाए रखने की ऐसी पहल की है और वह भी बिना किसी आर्थिक लाभ की भावना से। इसकी नींव आज से ५ वर्ष पूर्व कानपुर के एक चमड़ा व्यवसायी महबूब रहमान द्वारा समाजसेवा के लिए कुछ ठोस करने के विचार से पड़ी और इस शुभ संकल्प में कुछ डाक्टरों ने अपना कौशल जोड़ दिया। आज प्राणोदय की प्रमुख टीम में भारतीय वायुसेना के सेवानिवृत्त स्क्वाड्रन लीडर डा. सुनीत गुप्ता, डा. राजू केडिया और डा. प्रदीप टंडन जैसे चिकित्सक शामिल हैं।
किसी भी रूप में अनुदान न स्वीकारने वाली इस संस्था के पास 4 आयातित मानव पुतले हैं। यह चिकित्सक आम जनता द्वारा तय किए गए स्थान पर पहुंच कर 2-3 घंटे की कार्यशाला आयोजित करते हैं। इसमें लेक्चर्स, स्लाइड शो, पुतलों पर चिकित्सकों का प्रदर्शन और अंतत: आम जनता का पुतलों पर अभ्यास शामिल होता है। इन चिकित्सकों ने अब तक तकरीबन 62 कार्यशालाओं द्वारा लगभग 7,000 लोगों को दुर्घटना के बाद जीवन रक्षा का प्रशिक्षण दिया है। इसमें आम नागरिकों तथा ग्रामीणों के अतिरिक्त ट्रैफिक पुलिस, फायर ब्रिगेड, फैक्ट्री श्रमिक, स्कूली छात्र-छात्राएं, भारतीय वायुसेना कर्मचारी तथा एनसीसी कैडेट शामिल हैं।
डा. सुनीत गुप्ता के अनुसार,''दुर्घटनाओं के बाद अक्सर लोग तमाशबीन बन कर मजमा लगा लेते हैं, लेकिन कोई बिरला ही मदद के लिए आगे बढ़ता है। वह भी घायल को अस्पताल ले जाने तक अपनी ओर से कुछ नहीं कर पाता और कई बार यह बेबसी मौत के रूप में सामने आती है। जीवन बचाने का यह कौशल सीखना बहुत आसान है; इससे आप घायल को उसकी साँसे वापस सौंप सकते हैं। महिलाओं और बड़े बच्चों को भी यह हुनर सीखना चाहिए, इससे वे घरों और स्कूलों में दुर्घटनाओं का दुष्प्रभाव रोक सकेंगे। हमारी अपील बस इतनी है कि दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को देख कर आगे बढ़ जाने अथवा झुंड में शामिल होने की जगह उसकी सहायता का हुनर सीखिए और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कीजिए। दुर्घटना किसी को बता कर नहीं आती। अगर आप किसी की सहायता के लिए आगे नहीं बढ़ते तो यह उम्मीद कैसे करेंगे कि कल आप या आपका कोई परिचित ऐसी ही स्थिति में होने पर अगली सुबह का सूरज देख पाएगा?'
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