Saturday, May 23, 2009

जहर चाहिए या जिंदगी

रासायनिक खादों और जहरीले पानी से सिंचाई के कारण सब्जियों और अनाज में घुल रहा है धीमा जहर। ऐसे में स्वास्थ्य के लिए वरदान बनकर आई है जैविक खेती और कानपुर में भी हो रहे हैं इसके प्रयोग

पहली नजर में यह बरसात आने से पहले चलाए जाने वाले नाला सफाई अभियानों जैसा ही लगा। आवास विकास कालोनी, हंसपुरम की सीमा से गुजरते हुए गंदे नाले के पानी को कुछ लोग बड़ी पाइपों और मशीन द्वारा खींच रहे थे, लेकिन जरा ठहरिए, यह सरकारी कर्मचारी नहीं-स्थानीय किसान थे। यह नाला सफाई का सामुदायिक अभियान भी नहीं, पास के खेतों की सिंचाई का तरीका था। उन हरी-भरी सब्जियों के लिए, जिन्हें डाक्टर इसलिए कच्चा खाने की सलाह देते हैं ताकि हमारे स्वास्थ्य की रक्षा हो और हम निरोगी रहें!
शहरी इलाकों और इससे लगी देहात की सीमा में अनाज और सब्जियों को उगाने के लिए यह खेल उसी तरह आम है, जैसे दूध पाने के लिए गाय-भैंस को नियमित रूप से हार्मोन इंजेक्शन देना। तर्क यह कि इस सड़ांध मारते जहरीले पानी से 'सब्जियों को खूब पोषण मिलता है और यह हरी-भरी हो जाती हैं, जबकि हकीकत यह है कि इस प्रक्रिया में सब्जियां धीमे जहर से भरी थैलियों में तब्दील हो जाती हैं। 
डायटीशियन और योग विशेषज्ञ अन्नपूर्णा तिवारी की राय है कि यह जिंदगी के नाम पर जहर देने वाली बात है। शीतल पेयों में कीटनाशकों की छोटी से मात्रा पाए जाने पर देश भर में विरोध हुआ, वहीं आपके सलाद से लेकर रोटी तक में घुल रहे इस जहर को आप चुपचाप खा लेते हैं। सब्जी ताजी है? का सवाल पूछना याद रहता है और आप यह कभी नहीं पूछते कि यह कैसे उगाई गई है? आज रासायनिक खादों और नालों के जहरीले पानी की बात छोडि़ए, लौकी-कद्दू में आक्सीटोसिन हार्मोन इंजेक्शन तक ठोंके जा रहे हैं ताकि वे एक रात में सरसरा कर बढ़ जाएं।
श्रीमती तिवारी को यह जान कर कुछ राहत मिलेगी कि जागरूक कानपुराइट्स अब इस धांधली के बारे में सवाल पूछने लगे हैं और इनमें से कई ने जहर को छोड़ जिंदगी का रास्ता पकड़ लिया है। यह है आर्गेनिक फार्मिंग यानी जैविक खेती, जहां रासायनिक खादों और जहरीले तत्वों का प्रवेश मना है। यह ऐसे खेत हैं जहां धरती मां रासायनिक खादों के चाबुक खाकर नहीं, बल्कि अपनी स्वाभाविक खुराक पाकर हरा सोना उगाती है। आज दुनिया भर के फैमिली स्टोर्स और मेगा माल्स में आर्गेनिक उत्पाद बिकते हैं; अंतरराष्ट्रीय होटल समूह अपनी मेन्यू लिस्ट में इनका जिक्र करते हैं और अब कानपुर के निजी फार्म हाउसों में इस पर खूब प्रयोग चल रहे हैं।
सरसौल में सुदर्शन कृषि फार्म में जैविक खाद के प्रयोग से गेहूं की उपज लेने वाले शम्मी मल्होत्रा कानपुर फ्लोरिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। शम्मी कहते हैं, ''मैंने अपने अनुभव से पाया है कि जैविक खाद से तैयार अनाज और सब्जियों में प्राकृतिक मिठास होती है, इसलिए मैंने इसे आजमाने का फैसला किया। फूलों पर प्रयोग के बाद अब मैं आर्गेनिक अनाज को घरेलू और परिचितों के इस्तेमाल के लिए उगा रहा हूं और यह अच्छा अनुभव है।
अब स्थानीय किसानों के साथ अपने इन अनुभवों को बाँटने के लिए शम्मी सीएसए के कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से कार्यशालाएं भी आयोजित करवा रहे हैं। 
शम्मी की ही तरह फ्लोरल शॉप कली कुंज के सुनील तिवारी इस तकनीक का प्रयोग गुलाब पर कर चुके हैं और नतीजे उत्साहवर्धक रहे, वे कहते हैं कि इस फूल का प्रयोग उपहार के साथ गुलाबजल और गुलकंद के लिए भी होता है। इसलिए मैंने देसी गुलाब के लिए अपने उत्पादक से जैविक खाद ही आजमाने को कहा। सुनील के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उनके उत्पादक ने उन्हें सुनहरे शहद की एक बड़ी बोतल यह कहते हुए भेंट की कि, ''यह प्राकृतिक गुलाब के प्रति आकृष्ट हुई मधुमक्खियों की भेजी सौगात है।
सुनील इस छोटी सी घटना को एक सबक के रूप में देखते हैं, ''सूखी पत्तियों और गोबर-भूसे की मिश्रित कंपोस्ट खाद, वर्मी कंपोस्ट प्लांट और प्राकृतिक ढंग से धरती पर दबाव दिए बिना उपज का यह तरीका सस्ती रासायनिक खादों की तुलना में महंगा पड़ता है, लेकिन लंबे समय में यह धरती की उस उर्वरा शक्ति और जैव विविधता को लौटा देता है, जो रासायनिक खादों के कारण क्षीण हो चुकी थी!'

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